फिल्म निर्माण का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन है। और इससे जीवन के बहुत बड़े उद्देश्य की पूर्ति होती है। यदि फिल्म निर्माण का आदि और अन्त केवल मानोरंजन तक सीमित कर दिया जाये तो इसका राष्ट्रीय महत्व बिल्कुल कम हो जाता है।
फिल्म, राष्ट्र के निर्माण, शिक्षण और चारित्रिक निर्माण के लिये प्रभावोत्पादक माध्यम है। यदि निर्माता का ध्यान फिल्म निर्माण के समय केवल मनोरंजन की सामग्री जुटाने में ही केन्द्रित हो जाये तो वह आगे और कुछ नहीं कर सकता।
सिनेमागृह व्याख्यान शाला नहीं है। और उसे होना भी नहीं चाहिये। ऐसा करने से उसकी उपयोगिता नष्ट हो जाती है।
तात्पर्य यह है कि फिल्म न तो बिशुद्ध मनोरंजन के लिये हैं और न उपदेश के लिये। फिल्म निर्माता भी कोई पंडित व उपदेशक अथवा भांड व विदूषक नहीं है।
'कनीज़' चित्र का निर्माण इसी दृष्टिकोण से किया गया है।
साबिरा करोड़पति अकबर सेठ की इकलौती बेटी है। अख्तर मैनेजर हमीद का बेटा है। दोनों की मातायें इनकी आपस में शादी कर देना चाहती हैं। अकबर सेठ का घमंड इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। और हमीद के षडयन्त्र से अकबर पागलखाने दाखिल हो जाता है। अब अकबर की जगह हमीद सेठ है। अब उसे इ शादी के प्रस्ताव से इन्कार है।
भाग्यवश परदेश में आकर अख्तर और साबिरा प्रेमजाल में फंस जाते हैं।
फेशन की पुतली, ऐय्यारी और मक्कारी में प्रवीण नृत्य और गायन में पारंगत, सुन्दरी डार्लिंग नाम की एक स्त्री साबिरा के प्रेम पथ में कांटा बनकर उसके अमृतमय जीवन में विष घोल देती है। अख्तर उसके झूठे झलक से चका चौंधिया जाता है। साबिरा जैसी साध्वी स्त्री का प्रेम ठुकरा देता है। और अपने पिता को पागल बनाकर पागलखाने भिजवा देता है।
साबिरा के धैर्य और कष्ट सहिष्णुता ने उसके जीवन को सरस बना दिया। वह घर की रानी बन गई।
'कनीज़' में धन का गर्व, पूंजीवाद का अपवाद, प्रेम और वासना का संघर्ष, मानवी कुचक्र और भाग्य के खेल का सुन्दर सम्मिश्रण है।
'कनीज़' देखकर ईश्वर की आस्था में विश्वास दृढ़ होता है। और मुंह से बरबस निकल पड़ता है- परमात्मा के यहां देर है - अन्धेर नहीं।
[From the official press booklet]